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सामाजिक >> घर और बाहर घर और बाहररबीन्द्रनाथ टैगोर
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
जमींदार परिवार की एकमात्र सुहागिन विमला रूप के अभाव में भी अपने पति को प्रिया तो बनी रही है लेकिन रूपगर्विता विधवा जेठानियों के तानों ने उसे कभी उभरने नहीं दिया।
अचानक एक दिन पति के देशप्रेमी मिव की जादुई बातों से आत्मविस्मृत सी हो कर वह रूप की प्रशंसा की बाढ़ में बहती चली गई एक बार फिसले कदम कहां जा कर रुके ? देशप्रेम की आड़ में परवान चढ़े आकर्षण का अंत क्या हुआ ?
रवीन्द्रनाथ टैगोर का, सरल सुबोध भाषा और आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया उपन्यास ‘घर और बाहर’ जो भारतीय नारी के संस्कारों और मानवीय कमजोरियों के बीच कशमकश को दर्शाता है।
इस पर तत्कालीन स्वदेशी आंदोलन का प्रभाव भी स्पष्ट है।
अचानक एक दिन पति के देशप्रेमी मिव की जादुई बातों से आत्मविस्मृत सी हो कर वह रूप की प्रशंसा की बाढ़ में बहती चली गई एक बार फिसले कदम कहां जा कर रुके ? देशप्रेम की आड़ में परवान चढ़े आकर्षण का अंत क्या हुआ ?
रवीन्द्रनाथ टैगोर का, सरल सुबोध भाषा और आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया उपन्यास ‘घर और बाहर’ जो भारतीय नारी के संस्कारों और मानवीय कमजोरियों के बीच कशमकश को दर्शाता है।
इस पर तत्कालीन स्वदेशी आंदोलन का प्रभाव भी स्पष्ट है।
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